Jallianwala’s Silence: हर साल 13 अप्रैल को हम जलियांवाला बाग हत्याकांड को याद करते हैं. ये वो काला दिन था, जिस दिन अंग्रेजों की बेरहमी ने सारी हदें पार कर दी थीं. 1919 में बैसाखी के पर्व पर पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था. ये सभा असहयोग आंदोलन के तहत हो रही थी, जिसमें हजारों लोग शामिल थे. लेकिन किसी को ये अंदाजा नहीं था कि ये सभा एक खौफनाक हत्याकांड में बदल जाएगी.
जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक ऐसा मोड़ था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। पंजाब के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था, जिसका उद्देश्य अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध दर्ज कराना था, लेकिन अंग्रेज जनरल डायर ने क्रूरता की हद पार कर दी। जलियांवाला बाग आज भी ब्रिटिश सरकार के घोर अत्याचार का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
जलियांवाला बाग नरसंहार के सभी वीर शहीदों को देशभर के मेरे परिवारजनों की ओर से कोटि-कोटि नमन। pic.twitter.com/Ow1jtjXdd0
— Narendra Modi (@narendramodi) April 13, 2024
Jallianwala’s Silence: शांतिपूर्ण सभा में खून की होली:
Jallianwala’s Silence: जलियांवाला बाग एक संकरी जगह है, जिसकी चारों ओर ऊंची दीवारें हैं. उसी दिन हजारों की संख्या में लोग असहयोग आंदोलन के तहत शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे. इनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल थे. अचानक जनरल डायर नामक क्रूर ब्रिटिश अफसर ने सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया. भागने का कोई रास्ता न होने के कारण लोग फंसे हुए थे. बिना किसी चेतावनी के गोलियों की बर्बरता शुरू हो गई. 4 घंटे तक चली इस गोलीबारी में सैकड़ों निहत्थे लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया.
इतिहास में दर्ज एक काला अध्याय:
हत्याकांड के बाद बाग में सन्नाटा छा गया. मृतकों की संख्या को लेकर मतभेद हैं, लेकिन अनुमान है कि करीब 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. जबकि ब्रिटिश सरकार ने सिर्फ 380 मौतों का आधिकारिक आंकड़ा बताया. जलियांवाला बाग की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान मौजूद हैं, जो उस खौफनाक दिन की गवाही देते हैं.
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस घटना ने असहयोग आंदोलन को और तेज कर दिया और भारत की आजादी की लड़ाई को एक नया मोड़ दिया. ये हमें याद दिलाता है कि आजादी हमें आसानी से नहीं मिली है. हमें उन शहीदों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए जिन्होंने अपना बलिदान दिया.
Jallianwala’s Silence: अंधाधुंध गोलियों की बौछार:
जनरल डायर नामक एक क्रूर अंग्रेज अफसर ने अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग को घेर लिया. बाग की चारों तरफ ऊंची दीवारें थीं, जिससे लोगों के भागने का कोई रास्ता नहीं था. डायर ने बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलवाना शुरू कर दिया.
“रॉलेट एक्ट”: बिना मुकदमा चलाए कैद का तानाशाही कानून
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के बाद, भारत में उभर रहे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने कई कठोर कानून बनाए थे. इनमें से एक था अराजक व क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919, जिसे रॉलेट एक्ट के नाम से भी जाना जाता है. 10 मार्च, 1919 को पारित यह कानून, ब्रिटिश सरकार के लिए एक तानाशाही हथियार बन गया.
रॉलेट एक्ट की मुख्य बातें:
- बिना मुकदमा चलाए कैद: इस कानून के तहत, ब्रिटिश सरकार बिना किसी मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी और उसे 6 महीने तक की कैद की सजा दे सकती थी.
- सभाओं पर प्रतिबंध: इस कानून ने सरकार को प्रदर्शन, सभाओं और जुलूसों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया.
- पत्र-व्यवहार पर नियंत्रण: सरकार को संदिग्ध व्यक्तियों के पत्र-व्यवहार को रोकने और जब्त करने का अधिकार भी दिया गया था.
क्यों कहा जाता था रॉलेट एक्ट “काला कानून”?
- अन्यायपूर्ण: रॉलेट एक्ट न्यायिक प्रक्रिया के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता था.
- अत्याचारी: बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार करने और कैद करने का प्रावधान सरकार को अत्याचार करने का अधिकार देता था.
- स्वतंत्रता का हनन: यह कानून लोगों की अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता जैसी बुनियादी स्वतंत्रताओं का हनन करता था.
Jallianwala’s Silence: शहीदों को श्रद्धांजलि:
जलियांवाला बाग हत्याकांड हमें याद दिलाता है कि हमारी आजादी कितनी मुश्किल से हासिल हुई है. हमें उन शहीदों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए जिन्होंने अपना बलिदान देकर हमें आजादी दिलाई.
यह नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसने देशभर में क्रोध की ज्वाला जगा दी.
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